‘सुनो, माया!’ किताब की मुख्य किरदार एक दिन अपने आप को मायूसी से घिरा पाती है। जब बहुत कोशिश करके भी वह रोशनी कहीं ढूंढ ना पायी, तो उसने माया को आवाज लगायी। क्या माया की कही बातें उसके लिये कुछ सहारा बन पायेंगी ?
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